है अडिग अविचल निश्छल मेरा पथ .....
फिर भी क्यों व्यर्थ डरता हूँ मैं......
जाने ही अनजाने में ही क्यों पल पल मरता हूँ मैं .....
रास्तो से वाकिफ हूँ जब ,,,,,,
तो आंख मुंड कर ना चल के.....
क्यों कण कण छन छन देखता चलता हूँ मैं .....
है उमीदो की एक लहर .....
है हौसलों का सिलसिला .....
फिर भी आत्मविश्वास की कमी लिए क्यों आगे बडू मैं ...
डरने की क्या बात यहाँ .....
जो कहने से कत्राऊ मैं .....
क्यों बेफिजूल की बातो में अपना सर खपाऊ मैं ....
जीवन है कोई खेल नहीं .....
क्यों ये समझ ना पाऊ मैं .....
हार नहीं कोई जीत नहीं .......
फिर भी क्यों पछताऊ मैं .....
क्यों ना चलते रहू ....
हस्ते रहू
और गीत मनोहर गाते रहू ......!!!!
जीवन को तोलु ना मैं .....
ना ही अफसोश मनाऊ मैं .....
मस्ती से जीवन क्यों ना बितायु मैं ......!!!
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