Tuesday, September 06, 2011

काश मन की बातें मन में ही ना छुपानी होती


काश मन की बातें मन में ही ना छुपानी होती
जो दिल में होता मेरे वो ही जुबान पर होती
मुखौटे का खेल मिचौनी में ना भागेदारी होती
जीवन में सच रहता केवल झूठ की जगह ना होती
काश मन की बातें मन में ही ना छुपानी होती

असली नकली कें दरमियान चुनना  कमजोरी ना होती
ढका धुक्क्की का खेल ना होकर सीधी लाइन सी होती
जीवन  तीखी  ना  होकर  मिसरी  की  तरह  होती
काश मन की बातें मन में ही ना छुपानी होती

छुपकर या पीठ पीछे ना बुराई की होती
जिंदगी में हर बात पर  ना लड़ाई की होती
हकीक़त सें अगर हमने दोस्ती की होती
तो सपनो के साये में ना दुबकी लगाई  होती
काश मन की बातें मन में ना छुपायी होती

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