काश मन की बातें मन में ही ना छुपानी होती
जो दिल में होता मेरे वो ही जुबान पर होती
मुखौटे का खेल मिचौनी में ना भागेदारी होती
जीवन में सच रहता केवल झूठ की जगह ना होती
काश मन की बातें मन में ही ना छुपानी होती
असली नकली कें दरमियान चुनना कमजोरी ना होती
ढका धुक्क्की का खेल ना होकर सीधी लाइन सी होती
जीवन तीखी ना होकर मिसरी की तरह होती
काश मन की बातें मन में ही ना छुपानी होती
छुपकर या पीठ पीछे ना बुराई की होती
जिंदगी में हर बात पर ना लड़ाई की होती
हकीक़त सें अगर हमने दोस्ती की होती
तो सपनो के साये में ना दुबकी लगाई होती
काश मन की बातें मन में ना छुपायी होती
No comments:
Post a Comment